यूपी: एससीएसटी का फर्जी केस दर्ज कराने वाले अधिवक्ता को उम्रकैद

जमीनी विवाद के चलते षड़यंत्र के तहत विरोधियों के खिलाफ एससी एसटी एक्ट का झूठा मुकदमा दर्ज कराने वाले अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। साथ ही एससी एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने परमानंद गुप्ता पर पांच लाख 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने इस मामले में आरोपी बनाई गई पूजा रावत को बरी कर दिया है।

अदालत ने पूजा रावत को ताकीद किया की अगर उसने भविष्य में परमानंद या किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर एससीएसटी एक्ट के प्राविधानों का दुरुपयोग करके रेप या गैंगरेप के फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए तो उसके खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी। कोर्ट ने आदेश कि पुलिस कमिश्नर को भी निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि जब भी एससीएसटी एक्ट और दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज हो तो इस तथ्य का भी उल्लेख किया जाए कि वादिनी या उसके परिवार के किसी सदस्य ने पूर्व में ऐसा कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है या कितने मुकदमे दर्ज कराए हैं। अगर कोर्ट से इससे संबंधित रिपोर्ट तलब की जाती है तो संबंधित थाने की पुलिस इस संबंध में कोर्ट को अपनी रिपोर्ट में सूचना देना सुनिश्चित करें।

मामला दर्ज होते ही पीड़ित को न दें प्रतिकार
कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति जिलाधिकारी को भेजने का आदेश देते हुए कहा कि अगर यह मुकदमा दर्ज कराने के बाद मामले की वादिनी पूजा रावत को राज्य सरकार से कोई प्रतिकार मिला हो तो उसे तुरंत वापस लिया जाए। कोर्ट ने जिलाधिकारी को निर्देश देते हुए कहा कि केस दर्ज होते ही मामला नहीं बनता। विवेचना और चार्जशीट दायर होने के बाद मामला बनता है। एससीएसटी एक्ट का कानून बनाते समय विधायिका की मंशा यह नहीं थी कि झूठा मुकदमा दर्ज करने वाले शरारती तत्वों को प्रतिकार के रूप में करदाताओं के बहुमूल्य धन को दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि जिलाधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि मात्र रिपोर्ट दर्ज होने पर ही पीड़ित को राहत या प्रतिकर की राशि न दी जाए। मामले में पुलिस आरोप पत्र दायर कर दे तब ही प्रतिकर दिया जाए क्योंकि एफआईआर दर्ज होते ही प्रतिकर की धनराशि दिए जाने से झूठे मुकदमे दर्ज कराने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट आने के पहले पीड़ित को मात्र वस्तु, खाद्य, चिकित्सा, जल, कपड़े, आश्रय, परिवहन सुविधा, भरण पोषण और सुरक्षा आदि की सहायता दी जाए। ऐसे मामले में विवेचक की फाइनल रिपोर्ट लगने के बाद भी तब तक कोई सहायता न दी जाए जब तक कोर्ट विपक्षी को आरोपी के रूप में तलब न कर ले।

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