समस्तीपुर के मूर्तिकारों का छलका दर्द, बोले- अब इस काम में मुनाफा नहीं, बस कर रहे हैं

समस्तीपुर। बिहार के समस्तीपुर में इन दिनों कुम्हार सरस्वती पूजा की तैयारियों में जुटे हैं। मां सरस्वती की मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। हर साल मेहनत करते हैं रचना को आकार देते हैं लेकिन मलाल एक ही कि घर बार चलाना मुश्किल हो जाता है। मूर्तिकारों की मानें तो पिछले कुछ सालों में मांग घटी है और इसका असर उनकी आमदनी पर पड़ा है। भविष्य को लेकर भी अब ये हुनरमंद सशंकित हैं।

कुम्हार पप्पू पिछले 20 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। आईएएनएस से बातचीत में पुश्तैनी काम की खूबियां और इससे जुड़ी मजबूरियां गिनाईं। बताया पिताजी भी इसी काम में लगे थे। अब माहौल बदल रहा है। चीजें वैसी नहीं रहीं। पहले सरस्वती पूजा के लिए बुकिंग (मूर्ति बनाने की) तीन-चार महीने पहले शुरू हो जाती थी, लेकिन इस साल अब तक बुकिंग नहीं हुई है।

पंडित रुआंसे हैं पर उम्मीद बरकरार है। कहते हैं, हम मूर्तियों को आधा तैयार कर रहे हैं, ताकि जब ग्राहक आएं तो वे देखकर बुकिंग कर लें। बस ग्राहकों का इंतजार है!”

अनीश कुमार युवा हैं। डिग्री कॉलेज में पढ़ते हैं। भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं ये पूछा तो कहते हैं, हर साल पूजा के मौके पर अपने माता-पिता की मदद के लिए घर आता हूं। एक उम्मीद रहती है। लेकिन, देख रहा हूं कि अब इस धंधे में भविष्य नहीं है।

चेहरे पर उदासी है, नाराजगी भी और आंखों में भविष्य को लेकर सपने भी हैं। बोले, यह अब घाटे का धंधा बन गया है। मैं सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा हूं। अगर नौकरी नहीं मिली तो फिर इस धंधे में कुछ नया करने की कोशिश करूंगा।

क्या लागत वसूल कर पा रहे हैं मूर्तिकार? इस सवाल पर मूर्तिकार आंकड़ों की जुबानी अपनी बेबसी की कहानी बताते हैं।

अनीश के मुताबिक 2 से 3 फीट की मूर्ति बनाने में कम से कम 500 रुपए का खर्च आता है। लेकिन, मूर्ति की कीमत 700 से 800 रुपए तक मिलती है। एक मूर्ति तैयार करने में 15 से 20 दिन का समय लगता है, जबकि आमदनी केवल 200 से 300 रुपए तक होती है, जो लागत और मेहनत को मिलाकर कुछ खास उत्साहजनक नहीं है।

समस्तीपुर जिले के 20 प्रखंडों के करीब 80 गांवों में कुम्हार प्रजापति समाज के करीब 3 लाख लोग निवास करते हैं। इन लोगों की आजीविका का मुख्य जरिया मूर्ति कला ही है। लेकिन कम मांग और बढ़ती महंगाई ने इनकी कमर तोड़ कर रख दी है।

बिहार कुम्हार प्रजापति समन्वय समिति के जिला अध्यक्ष प्रमोद कुमार पंडित कुछ योजनाओं की बात करते हैं।

उन्होंने बताया कि बिहार लघु उद्यमी योजना से कुम्हार प्रजापति समाज को वंचित रखा गया है। इस योजना के तहत कारोबार के लिए 2 से 10 लाख रुपए तक की राशि मिलती है, जिसमें आधी राशि सब्सिडी के रूप में होती है। अगर मूर्ति कला को इस योजना से जोड़ा जाता, तो समाज के लोग आर्थिक रूप से बहुत लाभान्वित होंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि माटी कला बोर्ड का गठन न होने के कारण कुम्हारों को लाभ नहीं मिल पा रहा है, जबकि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में माटी कला बोर्ड का गठन किया गया है, जिससे वहां के कुम्हार प्रजापति समाज के लोगों को पर्याप्त आर्थिक सहायता मिल रही है।

 

Related Articles

Back to top button
X (Twitter)
Visit Us
Follow Me
YouTube
YouTube