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राजीव सरकार बर्खास्त करने को तैयार थे ज्ञानी जी-राज खन्ना

राज खन्ना

1982 में राष्ट्रपति पद के लिए नाम की घोषणा के साथ ही ज्ञानी जैल सिंह ने हलचल मचा दी थी। तब वफादारी प्रदर्शन के लिए ज्ञानी जी ने कहा था कि मैडम झाड़ू लेकर सफाई करने को कहेंगी तो उसके लिए भी तैयार हूं। ..और इन्हीं ज्ञानीजी के 1984 के आपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिराजी से रिश्ते खराब हो गए। अगले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय हालात और बिगड़े। राष्ट्रपति से उन लोगों की मुलाकातें बढ़ गई जो सरकार के खिलाफ थे। जासूसी के अंदेशे में ज्ञानी जी राष्ट्रपति भवन के किसी कक्ष की जगह मुगल गार्डन में टहलते हुए ऐसे लोगों से बातचीत करते थे। चुनी हुई सरकार बर्खास्त करने की ज्ञानी जी की तैयारी ने लोगों को चिंतित कर दिया था । वे अब तक के अकेले राष्ट्रपति थे जिनके खिलाफ महाभियोग लाने की चर्चाएं हुईं। इसी खींचातानी के दौरान अगले राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन का नाम चुनाव के महीनों पहले घोषित हो गया। सरकार और राष्ट्रपति के रिश्ते सुधारने के लिए ज्ञानी जी खिलाफ खुली बयानबाजी करने वाले केंद्रीय मंत्री के.के.तिवारी की मंत्रिमंडल से छुट्टी हुई।

1986 आने तक राजीव गांधी की सरकार और राष्ट्रपति के बीच संवादहीनता काफी बढ़ चुकी थी। आपरेशन ब्लू स्टार ने इंदिरा जी से उनके रिश्ते बिगाड़े। फिर इंदिरा जी की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर सिखों की हत्या और इस सिलसिले में राजीव सरकार के रुख ने ज्ञानी जी को काफी आहत किया था। सिखों की हत्या से जुड़े रंगनाथ मिश्र कमीशन और इंदिरा जी के हत्या की जांच के लिए गठित ठक्कर कमीशन की रिपोर्टें ज्ञानी जी के मौखिक और लिखित आग्रह के बाद भी सरकार ने उन्हें उपलब्ध नहीं कराई। बोफोर्स विवाद बढ़ने पर उससे जुड़ी फाइलें प्रस्तुत करने के राष्ट्रपति के आदेश की भी सरकार ने अनसुनी की। उस दौर में राष्ट्रपति भवन से आने वाला हर निर्देश और आग्रह सरकार के स्तर पर उपेक्षित था।

खिन्न ज्ञानी जी विभिन्न तरीकों से अपनी नाराजगी दर्ज कर रहे थे। उन्होंने लालडेंगा के साथ मिजोरम समझौते पर सवाल उठाए। जजों की नियुक्ति में भिन्न पैमाने अपनाए जाने पर सरकार की आलोचना की। शाहबानो प्रकरण में संविधान संशोधन विधेयक को लटकाया। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के एक बड़े हिस्से को काट दिए जाने पर असंतोष जाहिर किया। पोस्टल कानून में संशोधन के बिल को अपने स्तर पर रोक लिया और इसके जरिए सरकार को मिलने वाली शक्ति के दुरुपयोग की आशंका में लिखित में सवाल उठाए।

ज्ञानी जैल सिंह , राजीव गांधी की सरकार को बर्खास्त करने की तैयारी में थे। प्रख्यात पत्रकार अरुण शौरी की हाल में प्रकाशित पुस्तक The Commissioner For Lost Causes के अनुसार अरुण नेहरू,यशपाल कपूर और विशेषकर विद्या चरण शुक्ल की उन दिनों ज्ञानी जी से नियमित मुलाकातें चल रही थीं। राजीव गांधी के विकल्प की तलाश थी। इनमें एक नाम पूर्व कानून मंत्री अशोक सेन का था। एक मौके पर आर.वेंकटरमन के तैयार हो जाने की चर्चा चली। विद्याचरण शुक्ल ने इसकी जानकारी राजीव गांधी को दी। राजीव गांधी ने वेंकटरमन से भेंट की और उन्हें राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव कर दिया।यद्यपि तब राष्ट्रपति चुनाव में महीनों की देर थी लेकिन कांग्रेस पार्टी ने आर.वेंकटरमन के नाम की घोषणा कर दी।

राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी ज्ञानी जी से प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव प्रस्ताव मिला था। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय की किताब ‘ मंजिल से ज्यादा सफर ‘ में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने साक्षात्कार में इसे स्वीकार किया है। सिंह के अनुसार जो लोग उनसे (ज्ञानीजी) से मिलते थे ,उनसे वे भरोसे में कहा करते थे कि अगर विश्वनाथ प्रताप सिंह तैयार हो जाएं तो राजीव गांधी को बर्खास्त कर उन्हें शपथ दिला सकता हूं। वीपी सिंह के अनुसार जो लोग राष्ट्रपति का संदेश लेकर आ रहे थे , उन्हें मैने मना कर दिया। उसके बाद ज्ञानी जैल सिंह ने मुलाकात के लिए सीधे अनुरोध किया तो मैं उनसे मिलने गया। ” राष्ट्रपति भवन में वे अपने दफ्तर में बैठे हुए थे। उन्होंने कहा कि आपसे यहां बात नहीं करूंगा। वे मुझे मुगल गार्डन में ले गए। उन्होंने कहा कि यहां मेरे ऊपर जासूसी हो रही है। हमारी बातचीत सुनने के लिए यहां यंत्र लगाए गए हैं। मुगल गार्डन में टहलते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि आप प्रधानमंत्री बनने के लिए अगर तैयार हो जाएं तो मैं शपथ दिला सकता हूं। मुझे बताया गया है कि कांग्रेस के 150 से ज्यादा सांसद आपके साथ आ जायेंगे और आपका बहुमत हो सकता है। मैने उनसे कहा था कि आपका यह सोचना ही गलत है।” वीपी सिंह के अनुसार जब मैं रक्षा मंत्री था तभी कुछ अखबारों में राष्ट्रपति के संविधान विशेषज्ञों से मिलने और प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बर्खास्त करने के संवैधानिक आधार खोजने की खबरें छपने लगी थीं। मेरा यह स्पष्ट मत था कि राष्ट्रपति का यह कदम अनुचित होगा।

अरुण शौरी ने अपनी किताब में लिखा है कि एक शाम उनके पास राम नाथ गोयनका ( इंडियन एक्सप्रेस समूह के मालिक) का फौरन उनके सुंदर नगर फ्लैट पर पहुंचने का संदेश आया। वहां पहुंचने पर उन्होंने बताया कि ज्ञानी जैल सिंह सरकार को बर्खास्त करने की तैयारी में हैं । राजमाता विजय राजे सिंधिया उनके पास गई हैं। उनके साथ वह चिट्ठी भी है जो ज्ञानी जैल सिंह की ओर से राजीव गांधी की बर्खास्तगी को लिखी जानी है। शौरी के मुताबिक उन्होंने ऐसे किसी कदम को खतरनाक बताया। जिक्र किया कि 520 के सदन में 410 राजीव गांधी के साथ हैं यानी दस में आठ। कितनों को अपनी ओर खींच लेंगे ? चरण सिंह प्रकरण दोहराया जाएगा। ऐसी कोई सरकार सदन का सामना नहीं कर पाएगी। अगले दस – पंद्रह मिनट के तर्क-वितर्क के बाद गोयनका ने मुझसे फौरन राष्ट्रपति भवन जाने और ज्ञानी जी को रोकने और राजमाता के हाथ भेजी चिट्ठी पर कुछ न करने के लिए कहा। शौरी बहुत जल्दबाजी में राष्ट्रपति भवन पहुंचे। ज्ञानी जी उन्हें लिफ्ट से पहले फ्लोर पर ले गए, जहां उन्होंने राजमाता द्वारा लाई चिट्ठी और सरकार बर्खास्त करने के अपने फैसले की जानकारी दी। ज्ञानी जी की दिक्कत यह थी कि बर्खास्तगी की राजीव गांधी को भेजी जाने वाली चिट्ठी को तैयार करने से उनके दोनों सचिवों वरदराजन और तरलोचन सिंह ने इंकार कर दिया था। शौरी ने सरकार की बर्खास्तगी के खिलाफ अपने तर्क ज्ञानी जी के सामने दोहराए। इसे तख्ता पलट बताया और सवाल किया कि अगर वह (राजीव गांधी) पांच लाख लोगों के साथ राष्ट्रपति भवन घेर लेंगे तो क्या करेंगे ? शौरी के अनुसार ज्ञानी जी ने उनसे कहा, ‘ तुम भी तैयार नहीं। तुम्हे शर्म आनी चाहिए कहते हुए वे उठे और मुझे गले लगाया। ‘ आडवाणी जी ने उसी दिन तरलोचन सिंह को फोन कर राष्ट्रपति से भेंट का समय मांगा। आडवाणी जी ने राष्ट्रपति से भेंट कर साफ किया कि राजमाता उनसे व्यक्तिगत हैसियत में मिली होंगी। भाजपा का ऐसी किसी कोशिश से कोई संबंध नहीं है।

मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी अपनी आत्मकथा ‘ एक जिंदगी काफी नहीं ‘ में ज्ञानी जी की राजीव गांधी से नाराजगी और सरकार की बर्खास्तगी की कोशिशों का जिक्र किया है। नैयर की ज्ञानी जी के राष्ट्रपति बनने के बाद मुलाकातें बढ़ गई थीं। नैयर के अनुसार आपरेशन ब्लू स्टार के फैसले पर सलाह नहीं लिए जाने से ज्ञानी जी काफी नाराज थे और सरकार को नीचा दिखाने के अवसर की तलाश में रहते थे। शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी की सरकार द्वारा कराए गए संविधान संशोधन विधेयक को उन्होंने कुछ दिन लटकाए रखा। लेकिन फिर मुसलमानों की नाराजगी की आशंका में उन्होंने अपना विचार बदला। हालांकि इस मंजूरी के पहले उन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को राष्ट्रपति भवन के कई चक्कर लगवाए। इसके बाद सरकार की प्रतिक्रिया और भी खराब थी। कैबिनेट के फैसले और विदेशी मिशनों आदि के संदेश राष्ट्रपति को भेजने बंद कर दिए गए। ज्ञानी जी ने इसका विरोध किया। डाक संशोधन विधेयक की मंजूरी को रोककर उन्होंने फिर अपनी नाराजगी जाहिर की। पत्रकार और कार्टूनिस्ट राजेंद्र पुरी ने राष्ट्रपति के सामने राजीव गांधी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए याचिका प्रस्तुत की थी। राष्ट्रपति ने मंजूरी का मन बनाया था। नैयर के अनुसार यदि उन्होंने मंजूरी दी होती तो कांग्रेस के सांसद उनके विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव जरूर लाते।

ज्ञानी जी ने सरकार की बर्खास्तगी अपना इरादा कैसे बदला ? बूटा सिंह का दावा था कि उन्होंने इसके लिए राष्ट्रपति को राजी किया। उधर अरुण शौरी के अनुसार राजमाता चिट्ठी प्रकरण के अगले दिन तरलोचन सिंह मेरे घर आए तो मैने कहा कि जो कुछ भी कल हुआ वह पागलपन था। तरलोचन ने शौरी से कहा कि,’ आप ज्ञानी जी की पॉलिसी नहीं समझते। वह हमला नहीं करते। डराते हैं। आदमी को मारो मत। उसे धक्का दो। उसके कपड़े फाड़ दो। जमीन पर गिरा दो और डरा कर छोड़ दो।’ तरलोचन ने बाद में शौरी से बताया था कि ज्ञानी जी का तरीका काम कर गया। राजीव गांधी को अहसास हो गया कि ज्ञानी जी किसी सीमा तक जा सकते हैं, इसलिए उनसे संबंध सुधारना जरूरी है। राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की चर्चा बंद हो गई। बुलाने पर भी न आने वाले मंत्रियों की राष्ट्रपति भवन में आमद तेज हो गई। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को रात्रि भोज में आमंत्रित कर गलतफहमियों पर अफसोस जताया। राष्ट्रपति ने मंत्री के. के. तिवारी जिन्होंने राष्ट्रपति भवन को खालिस्तानियों की शरणस्थली बताते हुए इस बीच काफी आपत्तिजनक बयानबाजी की थी , को मंत्रिमंडल से बाहर करने की शर्त रखी। राजीव गांधी ने भरोसा दिया कि वे तिवारी से इस्तीफा ले लेंगे। ज्ञानीजी ने कहा कि इस्तीफा नहीं। डिसमिस कीजिए। ऐसा ही हुआ। ज्ञानी जी का बाकी कार्यकाल शांति से गुजरा। उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे अप्रिय प्रसंग घटित हुए जिसकी नौबत नहीं आनी चाहिए थी । पर ये प्रसंग दोनों पक्षों को अपनी लक्ष्मण रेखा को हमेशा याद रखने की सीख दे गए।

सम्प्रति- लेखक श्री राजखन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में निरन्तर छपते रहते है।श्री खन्ना इतिहास की अहम घटनाओं पर काफी समय से लगातार लिख रहे है।

 

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