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आपातकाल के लिए विपक्षी नेता भी थे बराबर के जिम्मेदार – भूपेश

रायपुर 14 अगस्त।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि आपातकाल के लिए श्रीमती इन्दिरा गांधी एवं कांग्रेस ही नही विपक्षी नेता भी बराबर के जिम्मेदार थे।

श्री बघेल ने आज यहां स्वं देवी प्रसाद चौबे की स्मृति में आयोजित 22 वें वसुंधरा सम्मान से साहित्यकार लीलाधर मंडलोई को सम्मानित करने के बाद लोगो को सम्बोधित करते हुए कहा कि इन्दिरा जी साहसी थी उन्होने घोषित रूप से आपातकाल लगाया,लेकिन जेपी,मोरार जी एवं अन्य विपक्षी नेता भी उतने ही जिम्मेदार हैं जिन्होने ऐसी परिस्थिति पैदा की।एक व्यक्ति के भूख हड़ताल पर बैठने पर गुजरात की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर देने का साहस इन्दिरा जी में था।

उन्होने कहा कि मौजूदा दौर के अघोषित आपातकाल में असहमति को हर तरह से कुचलने की जो कोशिश हो रही है,उस पर जो लोग चुप है वह लोग भी उतने ही दोषी है।उन्होने कहा कि कोई व्यक्ति अगर इसके खिलाफ आवाज उठा रहा है तो कितने लोग उसके साथ खड़े हो रहे हैं? उन्होने कहा कि हमारे देश में असहमति एवं असहमति वैदिक काल से चल रही है और उसका सभी सम्मान करते रहे है।असहमति को कुचलने की संस्कृति जर्मनी ,इटली और दूसरे देशों की हो सकती है,लेकिन हमारे देश की नही।

वर्तमान पीढ़ी को इंगित करते हुए उन्होने कहा कि इन्हे मौजूदा हालात में आत्मचिंतन करने की जरूरत है।उन्होने महाभारत काल का जिक्र करते हुए कहा कि जो निष्पक्ष रहने की कोशिश कर रहे है वह बलराम की तरह पलायनवादी कहलायेंगे। उन्हे कृष्ण और अर्जुन की तरह मौजूदा हालात ले लड़ना होगा।उन्होने कहा कि कितने विचित्र हालात बन गए है कि कपड़ा पहनते वक्त देखना पड़ता है कि इससे साम्प्रदायिक तो नही कहे जायेंगे।फिल्म देखने जाने की इच्छा होने पर भी सोचना पड़ता है कि कौन कलाकार हैं और जाने पर किसका समर्थक प्रचारित कर दिया जायेगा।

उन्होने कहा कि आज लेखकों,कवियों और बौद्धिक लोगो के विचार आम लोगो तक नही पहुंच पा रहे है और मोबाइल युग में विद्यमान वाट्सएप यूनिवर्सिटी का विचार पहले प्रचारित हो जा रहा हैं।यह कुछ लोगो को हाथ में हैं जोकि नियोजित रूप से हर रात तय कर लेते हैं कि कल क्या प्रचारित करना हैँ।वह सुबह से लेकर रात तक इसकी समीक्षा करते हैं और फिर अगले दिन के टास्क पर जुट जाते हैं।उन्होने कहा कि इसे रोकना आसान नही है,लेकिन नामुमकिन भी नही हैं।

श्री बघेल ने कहा कि एक तरफ हम सहते हैं कि मानव मानव एक समान और दूसरी ओर हमारे इतने संकीर्ण विचार हैं कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम कुत्ते बिल्ली को तो गोद में लेने को तैयार है लेकिन अनुसूचित जाति के व्यक्ति के साथ बैठकर खाने को तैयार नही है। उन्होने कहा कि व्यवहार में विसंगति दूर करना गांधी जी का रास्ता हैं।उन्होने स्वं इस मौके पर स्वं चौबे के बलि प्रथा को मंदिर पर समाप्त करने के योगदान का भी जिक्र किया।

जाने माने साहित्यकार एवं पत्रकार विष्णु नागर ने कहा कि आज के दौर में डर का माहौल है।पहले संविधान के दायरे में बात करने वालों को कभी डर नही था।असहमति के प्रति ऐसा बर्ताव कभी नही हुआ।उन्होने कहा कि सत्ता में रहने वाली सरकारों के प्रति मुद्दों को लेकर असहमति विरोध सामान्य बात है लेकिन जिस तरह से जुलूस,धरना प्रदर्शन को रोकने की कोशिश हो रही है,उससे तानाशाही की स्थिति निर्मित हो गई है।कब किसको किस कारण गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाय,कहा नही जा सकता।

असहमति की आवाज को कुचलने की कोशिश का आरोप लगाते हुए श्री नागर ने कहा कि समाज का अल्पसंख्यक तपका राजनीतिक भागीदारी से उपेक्षित है और उसकी सहमति और असहमति का मायने नही रह गया है। बड़े बड़े पदें पर रहे लोग असुरक्षा के माहौल में जी रहे है।इसका असल कारण हर तरह की नफरत को वैधता मिल जाना है।इसके खिलाफ जिन्होने प्रश्न उठाया उसके खिलाफ जिस तरह का व्यवहार हुआ जिसकी कल्पना नही की जा सकती।इस दौर में धर्म एवं साम्प्रदायिकता को एकाकी बना दिया गया हैं।धर्मनिरपेक्ष रूप को मानने को तैयार नही हैं।उन्होने आपातकाल का भी दौर देखा है लेकिन अघोषित आपातकाल उससे कई गुना ज्यादा भयावह हैं।

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