
कोरोना काल में तेजी से फैलने वाले ब्लैक फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक नई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग ब्लैक फंगस से ठीक हो चुके हैं, उन्हें लंबे समय तक चलने वाली हेल्थ प्रॉब्लम्स जैसे चेहरे का बिगड़ना और बोलने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
ये स्टडी क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इन्फेक्शन नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित है। इसमें देश के 26 अस्पतालों में भर्ती 686 मरीजों की जांच की गई। स्टडी के लेखक डॉ. रिजवान सुलियंकटची अब्दुलकादर के अनुसार, ब्लैक फंगस से ठीक होने के एक साल बाद भी 70% से ज्यादा मरीज शारीरिक या मानसिक समस्याओं से परेशान पाए गए।
लोगों को हुईं ये दिक्कतें
उन्होंने बताया कि जिन लोगों को ऑपरेशन के साथ-साथ एंटीफंगल दवाओं का मिला-जुला इलाज मिला, उनकी जान बचने के चांस ज्यादा थे। लेकिन कई लोगों में इलाज के बाद चेहरे की बनावट बिगड़ना और मानसिक तनाव जैसी दिक्कतें देखी गईं। ये स्टडी ऑल इंडिया म्यूकोरमाइकोसिस कंसोर्टियम के साथ मिलकर की गई, जिसमें शहर और गांव दोनों जगहों के मरीजों को शामिल किया गया था।
ब्लैक फंगस से संक्रमित थे मरीज
इनमें से ज्यादातर मरीज मार्च से जुलाई 2021 के बीच ब्लैक फंगस से संक्रमित हुए थे, और इनमें 80% मरीज ऐसे थे जिन्हें कोरोना भी हुआ था। इस मामले में डॉ. रिजवान ने बताया कि ये दिक्कतें सिर्फ सोचने भर की नहीं हैं, बल्कि बहुत से मरीजों की असल जिंदगी में परेशानी बन चुकी हैं। जैसे चेहरा का खराब हो जाना, बोलने में दिक्कत और हर यमय चिंता में रहना।
उन्होंने कहा कि अभी भी वक्त है जब भारत को सिर्फ जान बचाने तक ही नहीं, बल्कि ठीक हो चुके मरीजों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना चाहिए।
ये रहे कुछ जरूरी आंकड़े
686 मरीजों में से 14.7% (101 मरीजों) की एक साल के अंदर मौत हो गई। ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल में इलाज के दौरान हुई।
जिन मरीजों को एम्फोटेरिसिन बी और पोसाकोनाजोल जैसी दवाएं दी गईं, उनकी हालत बेहतर रही और जिंदा रहने के चांस ज्यादा थे।
80% मरीजों को ब्लैक फंगस कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुआ। इसकी बड़ी वजह डायबिटीज, स्टेरॉयड और ऑक्सीजन थेरेपी मानी गई।
ब्लैक फंगस क्या है?
ब्लैक फंगस, जिसे म्यूकोरमाइकोसिस भी कहा जाता है, एक गंभीर फंगल इंफेक्शन है। यह नाक, सांस की नली, आंखों, दिमाग और जबड़े को प्रभावित कर सकता है। ये बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती है जो इम्यून सिस्टम को कमजोर करने वाली दवाएं लेते हैं, जैसे कि कैंसर या ट्रांसप्लांट के मरीज। डायबिटीज से पीड़ित लोगों में भी इसका खतरा ज्यादा होता है। कोरोना के दौरान कुछ दवाओं के इस्तेमाल से इसका फैलाव और बढ़ गया था।