अब डायबिटीज वाले भी उठा सकेंगे आम का लुत्फ

आधुनिकता के साथ जीवनशैली में अनेक बदलाव आए हैं। खान-पान से लेकर आहार-व्यवहार भी बदले। सोने-जगने का समय पहले जैसा नहीं रहा। इन सबका असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है। अनेक बीमारियों ने लोगों को गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया। मौसमी फल और सब्जियों का आनंद लेने वाले वर्जनाओं में बंध गए। शुगर के चलते जिह्वा को नियंत्रित करने की कड़ी चुनौती है। लेकिन, एक नए शोध की मानें तो अब डायबिटीज ग्रस्त लोग भी आम का आनंद ले सकेंगे। दरअसल, फोर्टिस सी डीओसी हास्पिटल फार डायबिटीज एंड एलायड साइंसेज और नेशनल डायबिटीज, ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (एन- डीओसी) दो संयुक्त अध्ययनों से स्पष्ट है कि नियंत्रित मात्रा में आम के सेवन से न केवल टाइप-टू डायबिटीज में ग्लाइसेमिक (रक्त शर्करा) कंट्रोल में रहता है, बल्कि शरीर का फैट भी कम होता है।

ब्रेड की तुलना में कम बढ़ा ग्लूकोज का स्तर
‘स्टडी विद कंटीन्युअस ग्लूकोज मानिटरिंग एंड ओरल टालरेंस टेस्ट में 95 प्रतिभागी शामिल किए गए। इनमें 45 को टाइप-2 डायबिटीज थी और 50 सामान्य लोग रहे। मधुमेह ग्रस्त और मधुमेह मुक्त दोनों ही श्रेणियों के लोगों को 250 ग्राम आम (सफेदा, दशहरी और लंगड़ा) या समान मात्रा में कैलोरी ब्रेड का सेवन कराया गया। दो घंटे तक परीक्षण और मल्टीपल ब्लड शुगर का आकलन किया गया। कंटीन्युअस ग्लूकोज मानिटरिंग (तीन दिन तक लगातार सेंसर आधारित शुगर मानिटरिंग) की मदद से प्रतिभागियों का मूल्यांकन किया गया। सफेदा, दशहरी और लंगड़ा के ग्लूकोज और सफेद ब्रेड के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि ओरल टालरेंस टेस्ट में दोनों ही श्रेणियों के लोगों में आम का सेवन करने से भी ब्रेड का सेवन करने जितना ही या उससे कम ग्लाइसेमिक रिस्पांस देखा गया। कंटीन्युअस ग्लूकोज मानिटरिंग में पाया गया कि आम खाने के बाद भी मधुमेह से ग्रस्त प्रतिभागियों में तीन दिनों तक नुकसानदेह ग्लूकोज की परिवर्तनशीलता (मीन एम्प्लिट्यूड आफ ग्लाइसेमिक एक्सकर्जन) ब्रेड के सेवन के मुकाबले काफी कम रही।

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