आप और हम ही नहीं जोधाबाई भी थी तुअर दाल की दीवानी

वैसे तो पूरी दुनिया में तुअर की दाल लोग खाते हैं लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं केवल हम ही नहीं बल्कि तुअर दाल महारानी जोधाबाई को भी ख़ूब पसंद थी. जी हाँ, तुअर दाल की खोज 14 शताब्दी में हुई थी और पुरातत्व विभाग को दक्कन के पठार(केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा) में इसके सदियों पुराने साक्ष्य मिले थे. वहीं कहा जाता है इन इलाकों में इसकी खेती हुआ करती थी और यहां के व्यापारियों के साथ ये भारत के उत्तरी इलाकों तक पहुंच गई.

कहते हैं दिल्ली और राजस्थान के लोगों ने इसे दिल से अपना लिया था और राजस्थान की पहचान बन चुका दाल-बाटी-चूरमा इसी दाल से बनता है. इतिहास कार कहते हैं कि महारानी जोधाबाई भी इसे बहुत पसंद करती थीं और उनकी शाही रसोई में जो पंचमेल दाल बनती थी उसमें तुअर की दाल भी मिलाई जाती थी.

वहीं ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की माने तो आज से 400 साल पहले जब वो अकबर से शादी कर मुग़ल साम्राज्ञी बनी थीं, तब वो अपने साथ राजपूतों के कई शाकाहारी व्यंजनों को बनाने की विधि लेकर गई थीं और उनमें तुअर दाल भी शामिल थी, जिसे बाद में मुग़ल बादशाह की शाही रसोई में भी पकाया जाने लगा था. कहते हैं यूरोपीय व्यापारी भारत के तटों पर मसालों की खोज में पहुंचे तो वो मसालों के साथ तुअर दाल को भी अपने साथ ले गए और अंग्रेज़ों ने इसे Pigeon Pea नाम दिया था.

Related Articles

Back to top button
X (Twitter)
Visit Us
Follow Me
YouTube
YouTube